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नीति संदेश।  जब भी कोई व्यक्ति गुरुनानक देवजी से कुछ प्रश्न पूछता तो वे बड़े काव्यात्मक अंदाज में उत्तर दिया करते थे। उनके उत्तरों को समझने के लिए व्यक्ति को बहुत गहराई से उनकी बात पर सोच-विचार करना पड़ता था।

एक दिन गुरुनानक पानीपत में घूम रहे थे। उस समय वहां एक प्रसिद्ध फकीर शाह शरफ भी आए हुए थे। गुरुनानक जो कपड़े पहनते थे, वे बिल्कुल गृहस्थ लोगों की तरह होते थे। उन्हें देखकर लगता नहीं था कि वे साधु हैं।

फकीर शाह शरफ ने नानकजी को देखा और कहा, ‘आप हैं तो साधु, लेकिन आपने किसी संन्यासी की तरह बाल नहीं मुड़वाए?’

गुरुनानक बोले, ‘मुड़ना तो मन को चाहिए, सिर को नहीं।’

ये उत्तर सुनकर फकीर हैरान हो गया। उसने फिर पूछा, ‘आपकी जाति क्या है?’

नानकजी बोले, ‘आग और हवा की जो जाति है, वही जाति मेरी है। ये दोनों किसी में भेद नहीं करते हैं।’

फकीर ने कुछ और प्रश्न इसी तरह के पूछे और नानकजी ने उनके जवाब भी बड़े रोचक ढंग से दिए।

अंत में फकीर ने नानकजी का हाथ चूमा और कहा, ‘तुम हो सच्चे फकीर।’

नानक ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि लोग आचरण से संतत्व अपनाएं, आवरण से नहीं। साधु होने का मतलब होता है- मन, वचन और कर्म में एक होकर जीना। अगर कोई व्यक्ति ये तय कर ले कि मैं अपने भीतर साधुता उतारना चाहता हूं, सत्य का मार्ग अपनाना चाहता हूं, दूसरों का सम्मान करते हुए जीना चाहता हूं तो इन सब बातों के लिए उसे साधु जैसा वेश रखने की जरूरत नहीं है। साधु जैसा आचरण किसी भी घर में, किसी भी कपड़े में और कोई भी काम करते हुए अपनाया जा सकता है। इससे दिखावा खत्म हो जाता है।’

सीख – काफी लोग सिर्फ दिखावे के लिए बहुत सारे वेश, बहुत सारे पद, बहुत सारी पहचान बना लेते हैं। इससे सामान्य लोग धोखा खा सकते हैं, लेकिन भगवान कर्म के प्रदर्शन को नहीं, सिर्फ कर्म को देखता है।

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