जन संवाद ( बात जन मन की )- सनातन काल से कलम साधना की श्रेष्ठ परम्परा रही है। कलम न होती तो शायद विश्व में ज्ञान का अस्तित्व न होता। ज्ञान न होता तो फिर क्या होता ? तो इस बात का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र देवर्षि ऋषि नारद जी इस भूमण्डल के प्रथम सूचनादाता (पत्रकार) थे। उनको तीनों लोक में कहीं भी किसी समय पहुंचने का वरदान प्राप्त था। वे सूचना देने के साथ साथ उत्पन्न समस्या व उसका समाधन भी बताते थे, ये एक पत्रकारीय गुण था। इनके बाद सूचना का माध्यम कबूतर व बाज भी बने। सूचना का माध्यम आकाशवाणी का भी जिक्र आता है। कंस व राजा जनक के समय धनुष भंग में आकाशवाणी का जिक्र आता है। ततपश्चात सूचना का माध्यम मुनादी (ढोल, नगाड़ा, डुगडुगी) बनी, जो गांव गांव में ढोलवाला देता था। कागज की उत्तपत्ति से पूर्व ताम्रपत्र पर भी लिखकर कर सूचना भेजने की परम्परा रही।
कार्यकुशल गुप्तचर भी सूचना प्रेषण का कार्य करते थे। लेखन भाषा के विकास के बाद शिलालेख की परंपरा रही। आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के समय “शिराज-उल” नामक अखबार हाथ से लिखा हुआ निकला। वर्ष 1766 में भारतवर्ष में अंग्रेजी पत्रकारिता का उदय हुआ। विलयम बोल्टस को अंग्रेजी पत्रकारिता का आदि पुरुष कहा जाता है। अंग्रेजों ने बौखला कर विलयम बोल्ट्स को लंदन भेज दिया। 29 जनवरी 1780 को बंगाल के कलकत्ता से बंगाल गजट का प्रकाशन शुरू हुआ।
30 मई 1826 को पं. जुगलकिशोर के सम्पादकत्व में हिंदी का पहला अखबार “उदन्त मार्तंड” निकला। तब से इस दिवस को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 30 मई को हिंदी पत्रकारिता के रूप में देश विदेश में हिंदी प्रेमी पत्रकारों द्वारा जोर शोर से मनाया जाता है। इस दिन विषय गोष्ठी, सेमिनार, अभिनंदन समारोह आदि का आयोजन होता है।
11 जून 1846 को उदन्त मार्तण्ड 5 भाषाओं में निकाला गया। 1848 में पं. प्रेम नारायण के सम्पादकत्व में इंदौर से मालवा निकला। ततपश्चात सर्वहितकारी, धर्मप्रकाश, तत्वबोधनी, सत्य दीपक, सुधावर्षन आदि अखबार निकले। 1885 में कालाकांकर से दैनिक हिंदुस्तान निकला, जिसके सम्पादक रामपाल भाटी थे। इसी दौरान केसरी व मराठा निकले। 1900 में पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने “सरस्वती” निकाला।
लोकमान्य तिलक ने 1890 में पूना से “केसरी” का प्रकाशन शुरू किया। वहीं इसी दौरान पं. मदनमोहन मालवीय जी ने इलाहाबाद से “अभ्युदय” निकाला। 1909 में पं. सुंदरलाल जी “कर्मयोगी” तथा गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने “प्रताप” का प्रकाशन शुरू किया। इंदु पत्रिका निकली, पं. मोती लाल नेहरू ने “इंडिपेंडेस” निकाला। गांधी जी ने यंग इंडिया, हरिजन व नवजीवन अखबार निकाले। इसके बाद “आज”, “कर्मवीर” व ” “नवभारत टाइम्स” आदि का प्रकाशन शुरू हुआ।
देश की पत्रकारिता को दो हिस्सों में बांट कर देखा जा सकता है, एक – स्वतंत्रता से पूर्व की पत्रकारिता व दो- स्वतंत्रता से बाद की पत्रकारिता। दोनों के मकसद अलग-अलग रहे। 1826 से लेकर 2021 के बीच की पत्रकारिता को भी पांच काल (हिस्सों) में बांटकर देखा जा सकता है:- 1826 से 1867 (हिंदी पत्रकारिता का प्रारम्भिक युग), 1867 से 1900 (भारतेंदु युग कवि वचन), 1900 से 1920 (पं.महावीर प्रसाद द्विवेदी युग, सरस्वती व भारत मित्र), 1920 से 1947 (गांधी जी युग, यंग इंडिया, हरिजन व नवजीवन), 1947 से वर्तमान (आधुनिक युग )।
यह उल्लेखनीय है कि पत्रकारों की कोई आचार संहिता नहीं थी, जो पत्रकारो ने स्वनिर्मित कर ली। रेग्युलेशन आफ प्रिंटिंग प्रेस एन्ड न्यूज पेपर्स एक्ट 1857 बना। 1867 में गलघोंटू प्रेस अधिनियम बना। तत्कालीन सरकारों द्वारा ऑफिसियल सीक्रेट्स अधिनियम 1889 व राजद्रोह अधिनियम 1898 लाकर पत्रकारों के समक्ष अवरोध पैदा किये गए। बीच-बीच में अपने कृत्य छिपाने हेतु राज्य सरकारों द्वारा “बिहार बिल” पत्रकारों के विरुद्ध कानून लाये गया।
प्रथम प्रेस आयोग ने भारतवर्ष में प्रेस की स्वतंत्रता तथा पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी, परिणामस्वरूप 4 जुलाई 1966 को प्रेस परिषद की स्थापना की गई, जिसने 16 नवम्बर 1966 से विधिवत कार्य करना शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रुप में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि विश्व के 50 देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद कार्यरत हैं।
भारत में प्रेस को वॉच डॉग तथा प्रेस परिषद इण्डिया को मॉरल वॉच डॉग कहा जाता है । राष्ट्रीय प्रेस दिवस प्रेस की स्वतंत्रता व जिम्मेदारियां की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कराता है। यह भी उल्लेखनीय है कि राज्य सरकारें यदाकदा पत्रकारिता व पत्रकारों के विरुद्ध अध्यादेश व कानून लाने से नहीं चूकती। जो भी मीडियाकर्मी सरकार के विरुद्ध छापता है तो उसको राजद्रोह व अन्य धाराओं में फंसाने से नहीं चूकती।
देश की आजादी के बाद एक लम्बे समय तक इंग्लिश मीडिया का वर्चस्व रहा लेकिन हिंदी मीडिया की लगातार सक्रियता व हिंदी की देश में बढ़ती स्वीकार्यता के चलते हिंदी मीडिया देश भर में छा गया। आधुनिक युग की तेज दौड़ में प्रिंट मीडिया के साथ साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आ गया, लोगों का रूझान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ओर कन्वर्ट हो गया। लेकिन इसके बावजूद भी प्रिंट मीडिया ने अपने को संघर्ष में टिकाए रखा। व्यवसायिकता की हौड़ में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आम जनमानस में अपनी विश्वशनियता खोता जा रहा है। जबकि आज भी प्रिंट मीडिया अपनी साख बचाये हुए है। मीडिया के निरंतर बदलते स्वरूप के बीच सोशल मीडिया का तेजी से प्रादुर्भाव हुआ है, जो समांतर मीडिया के रुप में खड़ा हो रहा है।
4-G व 5-G तकनीक आने पर डिजिटल मीडिया के रुप में क्रांति आने जा रही है। ई-पेपर ,पोर्टल्स तेजी से बढ़ रहे हैं। समाचार प्रेषण की इनकी गति इतनी तेज है कि प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इनके सामने पिछड़ता दिखाई दे रहा है। मीडिया निरन्तर परिवर्तनशील दिखाई पड़ रहा है। राजनीतिक दलों, सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक संगठनो ने सोशल मीडिया का अपना सेटअप खड़ा कर लिया है। देश में घटने वाली एक छोटी सी घटना विश्वव्यापी हो जाती है।
आज मीडिया द्वारा विषय व एजेंडा वोट बैंक की तरह सोच समझ कर तय किया जा रहा है। जो एक खतरनाक संकेत है। जब पत्रकारिता मिशन से हटकर मुनाफे का रूप ले ले तो सवाल तो खड़े होंगे ही। परिवर्तन तभी सार्थक होगा, जब उसमें लोक मङ्गल की भावना समाहित हो, ताकि पत्रकार समाज का दर्पण बने। आज पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन जन तक सूचनात्मक, शिक्षातमक व मनोरंजनात्मक सन्देश पहुंचाने की कला व विधा है। समाचार पत्र एक ऐसी उत्तर पुस्तिका के समान है, जिसमें लाखों परीक्षक व अनगिनत समीक्षक होते हैं। अन्य माध्यमों के परीक्षक व समीक्षक उनके लक्षित समूह होते हैं।
पत्रकारिता में तथ्यपरकता होनी चाहिये। समाचारों का सम्पादकीयकरण व खबरों में सनसनी पैदा करने की प्रवृत्ति घातक है। देश की बदलती पत्रकारिता का स्वागत है, बशर्ते वह अपने मूल्यों व आदर्शो की गरिमा रेखा कायम रखे ।
आइये ! हिंदी पत्रकारिता दिवस के इस पावन अवसर पर पत्रकारिता की शुचिता व पारदर्शिता, पत्रकारिता धर्म को कायम रखेंगे ।
डॉ. वी डी शर्मा, पत्रकार, देहरादून