न्यूज डेस्क / देहरादून। यमुना नदी पर स्थित लखवाड़ जल विधुत परियोजना को केंद्र से पर्यावरणीय स्वीकृति मिल गई है। तकरीबन 40 साल पहले लखवाड़ जल विधुत परियोजना को लेकर देखा गया सपना अब पूरा होता दिख रहा है। इस योजना को केंद्रीय योजना में शामिल किया है, जिससे अब समय पर इस योजना के पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है।
यमुना नदी पर लखवाड़ बहुउद्देश्यीय परियोजना को वर्ष 1976 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने मंजूरी दी थी। 1987 में सिंचाई विभाग ने इस पर काम शुरू किया, लेकिन 1992 में आर्थिक संकट के चलते काम रुक गया। परियोजना पर केवल 30 फीसदी ही काम हो पाया था। शुरुआत में इस परियोजना की लागत 140 करोड़ रुपये थी। वर्ष 1992 में परियोजना का काम ठप होने के लगभग 20 साल बाद फिर इसकी डीपीआर बनाई गई तो इसकी लागत करीब चार हजार करोड़ पहुंच गई।
हालांकि, वर्ष 2008 में ही केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करते हुए ये जिम्मेदारी उत्तराखंड जल विधुत निगम को सौंप दी, लेकिन बजट की कमी की वजह से काम शुरू नहीं हो पाया। लंबी जद्दोजहद के बाद यूजेवीएनएल ने वर्ष 2012 में परियोजना की डीपीआर बना ली। वर्ष 2013 की आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तत्कालीन केंद्र सरकार ने यमुना, अलकनंदा, भागीरथी और टौंस नदी पर बनने वाली परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी।
लखवाड़ जल विधुत परियोजना से प्रदेश को दोहरा लाभ होगा। एक प्रदेश को 300 मेगावाट बिजली मिलेगी और दूसरा 12।6 एमसीएम (मिलियन घन मीटर) पानी रोज मिलेगा। लेकिन पानी के मामले इस बांध से सर्वाधिक फायदा हरियाणा को मिलेगा। परियोजना से उत्तराखंड समेत छह राज्यों हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को पेयजल सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। तय शर्त के मुताबिक राज्यों को इस परियोजना निर्माण की लागत को संयुक्त ही मिलकर उठाना है। यही वजह है कि राज्यों में समन्वय न बन पाने की वजह से इसमें देरी हो रही थी।