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सक्सेस स्टोरी – पहाड़ के छह जिलों में ट्राउट मछली ने बदली किसानों की किस्मत

न्यूज डेस्क / देहरादून। बेहतरीन क्वालिटी की फिश ट्राउट की पैदावार की धरती पहाड़ बन रही है। पहाड़ के स्वस्छ, साफ प्रवाह पानी में इस प्रजाति की मछली की पैदावार हो रही है। 2023 तक इसके 10 गुना अधिक पैदावार होने की संभावनाये हैं ट्राउट मछली की डिमांड अत्यधिक है। लेकिन कोविड के कारण परिवहन, और दुकानों के बंद के कारण ट्राउट पर भी असर पड़ रहा है।

सरकार ने ट्राउट फिश का एक आउटलेट देहरादून में खोला है। राज्य में 12 और आउटलेट खोलने की योजना पर काम चल रहा है। इसका आउटलेट का नाम दिया गया है उत्तरा फिश। किसानों को ट्राउट फिश के बीज उत्तराखंड सरकार ने डेनमार्क से लाकर दिये हैं। जिससे किसान खुश हैं और उन्हें मछली पालन में मुनाफा हो रहा है।

आइए जानते हैं मछली के फायदे-
मछली बहुत ही पौष्टिक होती है और इसमें उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, आयोडिन, खनिज और विटामिन होते हैं जो बाकी के खाने की चीजों में नहीं मिल पाता है, इसलिए इसे जाड़ों में नियमित रूप से खाना चाहिए ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। मछली में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते है। इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन डी और विटामिन बी 2 होता है जो शरीर के साथ-साथ दिमाग को भी ताकतवर बनाता है।

मछली अलग-अलग किस्म की होती है, वैसे तो सभी प्रकार की मछली खाने के फायदे है। लेकिन इनमें फैटी मछली को सबसे ज्यादा पौष्टक माना जाता है क्योंकि इसमें पोषक तत्व अधिक होते है।

  •  दिल के मरीज को मछली का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और ओमेगा-3 होता है जिसके कारण यह दिल को स्वस्थ रखता है। -ओमेगा-3 एसिड शरीर के रक्तचाप को कम करता है। जो हर हाल में दिल के रोग से होने वले खतरे को कम करता है।
  • मछली खाने से हार्ट अटैक का खतरा कम होता है।
  • मछली का सेवन डिप्रेशन के मरीजों के लिए भी मददगार है।
  • यही नहीं एक अध्ययन के अनुसार जो लोग मछली खाते है। उनमें अस्थमा के विकसित होने की संभावना कम होती है। अगर केले के साथ मछली की गोली खाई जाए तो अस्थमा रोग में कमी आती है।
  • मछली का तेल खून में शुगर के स्तर को कम करता है, जिससे डायबिटीज जैसी बीमारियों का खतरा कम रहता है।

उत्तराखंड राज्य में 2017- 18 का आंकड़ा देखा जाए , तो 144 टन मछली का उत्पादन हुआ है। जिसमें उधमसिंहनगर,हरिद्वार और पहाड़ी क्षेत्र शामिल है। उत्तराखंड राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना जब से उत्तराखण्ड सरकार में कॉपरेटिव मिनिस्टर डॉ धन सिंह रावत ने राज्य की धरती पर उतारी है। तब से कुछ क्षेत्रों में आशातीत प्रगति हुई है, इसी में एक क्षेत्र है मछली पालन।

ट्राउट मछली स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतरीन मानी जाती है उत्तराखंड के ठंडे इलाकों में यानी 5000 फीट की हाइट के ऊपर वाले इलाकों में इसकी पैदावार की जा रही है। इस मछली की बहुत डिमांड है। यह 1000, 1200 रुपये किलो तक बिकती है।

यूकेसीडीपी के अंतर्गत मछली फेडरेशन पहाड़ के 6 जिलों – चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी, बागेश्वर, पिथौरागढ़ में कलस्टर आधारित ट्राउट मछली का पालन हो रहा है।

सहकारिता मंत्री डॉ धन सिंह रावत कहते हैं कि, छह जिलों में 28 समिति में 21 समिति मछली पालन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कर रही है। शेष समिति इस वर्ष पालन शुरू कर देंगी। 28 समिति में 300 किसान पूर्ण रूप से तथा 1250 किसान अप्रत्यक्ष रूप से मत्स्य पालन में लाभ ले रहे हैं। कोऑपरेटिव मंत्री डॉ रावत ने बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का 2022 में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य से ज्यादा काम हम इसमें कर रहे हैं उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य में 144 टन मछलियों का उत्पादन हो रहा है राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना के सहयोग से राज्य में 2023 तक 1500 टन अर्थात 10 गुना अधिक मत्स्य पालन की बढ़ोतरी होगी।जिससे किसानों की प्रगति में द्वार खुलेंगे।

मंत्री जी कहते हैं उत्तराखण्ड में किसानों की तरक्की के लिए यह योजना राज्य में लाई गई। परियोजना से गांव के अंतिम छोर में बैठे ग्रामीण को लाभ मिले, ऐसा मैप बनाया गया है। गौरतलब है कि सहकारिता मंत्री डॉ धन सिंह रावत तत्कालीन कृषि मंत्री भारत सरकार राधा मोहन सिंह से यह योजना उत्तराखंड लाए थे। और उत्तराखंड राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना राज्य की पहली योजना है जिसका उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया।

मत्स्य विभाग के संयुक्त निदेशक व राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना में परियोजना निदेशक एचके पुरोहित ने बताया कि, पहाड़ के ऊंचाई वाले इलाकों में किसानों से 15 नाली जमीन का एक कलेक्टर बनाया गया है। तीन पक्ष के बीच अनुबंध होता है पहली पक्ष भूस्वामी है दूसरी समिति है तीसरी पक्ष फाइनेंशियल और टेक्निकल पार्ट जो देखता है वह फेडरेशन है। 29 साल का एग्रीमेंट किया गया है, सालों तक घर बैठे किसानों को रोजगार देने की सरकार की योजना है।

एक 25 मीटर लंबे और 5 मीटर चौड़े पानी के तालाब को ट्राउट रेसवेज कहते हैं। इसमें विभाग ने 70 से 80 लाख रुपए खर्च किया है। ब्लू रेवुलेशन, और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना जो पिछले साल लागू हुई थी, से 40 फीसदी से 60 फीसदी तक इस योजना में अनुदान मिलता है इस मद से रेसवेज के लिये आवंटित किये गए।

पुरोहित बताते हैं कि,1 किलो ट्राउट फिश में ₹350 का खर्चा आता है वह ट्राउट फिश को सरकार किसानों से ₹600 किलो का खरीद रहे हैं।ताकि किसानों को लाभ मिल सके। हम इसे 800 से लेकर ₹1000 किलो तक बेच रहे हैं। उन्होंने बताया कि ट्राउट मछलियों की नई दिल्ली सहित महानगरों में बड़ी मांग है।

मंगलौर हरिद्वार में मंडी है वहां इसका कलेक्शन सेंटर बनाया जा रहा है क्योंकि मंगलौर से दिल्ली और एनसीआर नजदीक है और ट्राउट फिश के उत्पादन से किसानों को पूरा लाभ हो, इसका ध्यान रखा जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि किसान जितनी मछली की पैदावार कर रहे हैं उसके खरीद दार यूकेसीडीपी उनके तालाबों में खड़ा है। और वह खुशी खुशी 600 रुपये किलो ट्राउट फिश ले लेते हैं। इस तरह मछली पालन करने वाले किसानों को प्रति किलो 250 रुपये की बचत हो रही है।

उत्तराखंड राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना के मुख्य कार्यक्रम निदेशक व शासन में सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम फिश पर सालों से बहुत बारीकी से काम कर रहे हैं उनकी मंशा है कि राज्य के लोगों को फ्रेश ट्राउट फिश मिले।

आंध्रा और छत्तीसगढ़ की मछलियाँ यहाँ बक्से में बर्फ से ढक कर 7 वें दिन देहरादून पहुँचती हैं। इसका स्वाद दिल्ली की गाजीपुर मंडी तक ही रहता है। उत्तराखंड आकर यह फीका हो जाती है,लेकिन मछली है तो लोगों को 7 दिन पुरानी ही लेनी पड़ती है।

लेकिन, मुख्य कार्यक्रम निदेशक सुंदरम जी राज्य में फ्रेश फिश के उत्तरा फिश के 12 नये आउटलेट खोलने जा रहे हैं जिसमें देहरादून में तीन और नए हैं। हरिद्वार, उधम सिंहनगर, पौड़ी तथा अन्य जगह शामिल हैं। वर्तमान में देहरादून के आईटी पार्क में उत्तरा फिश का आउटलेट चल रहा है। सचिव कहते हैं आने वाले वक्त में मछली की पैदवार में कई गुना की बढ़ोतरी होगी ,जिससे मछली किसान को फायदा होगा।

उत्तराखंड राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना के नोडल अधिकारी व अपर निबंधक कोऑपरेटिव आनंद एडी शुक्ल बताते हैं कि,पहाड़ी क्षेत्रों में ट्राउट फिश की अपार संभावनाएं हैं जो लोग वास्तविक रुप से इस फील्ड में काम करना चाहते हैं वह समितियों से जुड़कर इस कार्य को शुरू कर सकते हैं परियोजना उन्हें घर बैठे मछली के पक्के तालाब बनाकर उपलब्ध करा देगी। और उन्हीं से 600 रुपये किलो मछली लेगी। और मछली के बीज उपलब्ध कराएगी।परियोजना का यही उद्देश्य है कि किसानों को लाभ मिले। इसी दिशा पर काम चल रहा है।

उत्तराखंड के पहाड़ों में ट्राउट फिश क्लाइमेट के अनुसार अंडे जनवरी माह में ही देती है। लेकिन डेनमार्क ऐसा देश है जहां 12 माह ट्राउट फिश अंडे देती है इस साल परियोजना के अंतर्गत ट्राउट फिश के छह लाख अंडे डेनमार्क से लाए गए थे, जो कि पहाड़ पर मछली किसानों को दिए गए थे। उन्हीं अंडों से आजकल ट्राउट फिश का प्रजनन हो रही है। कोविड-19 होने के कारण ट्राउट पैदावार की अपेक्षा खपत कम है यह भी एक चुनौतीपूर्ण विषय है।

इस साल सितंबर में भी डेनमार्क से ट्राउट फिश के छह लाख अंडे लाए जाने की योजना है।इन अंडों से अक्टूबर 15 तक बच्चे बन जाएंगे और यह पहाड़ के ताजे प्रवाहित पानी में पलकर अगले साल मार्केट में आ जाएंगे। विभाग की योजना है कि किसानों की साल में दो फसल ट्राउट फिश की हो। जिससे उनकी आमदनी में वृद्धि हो।

तालाब की मछली इतनी अच्छी नहीं मानी जाती जितनी साफ चलते पानी की। हिमालय में ऐसा ही किया जा रहा है। साफ प्रवाहित पानी जड़ी बूटियों का ठंडा पानी होता है। ट्राउट के लिए जितना ठंडा पानी उतना बेहतर। उस पानी में प्रदूषण बिल्कुल नहीं होता है। इसी में वह पलती है। तभी तो ट्राउट की डिमांड इतनी महंगी होने के बावजूद खपत ज्यादा रहती है। मछली विशेषज्ञ का सबसे पहले इसी पर हाथ जाता है। ग्लेशियर वाली ट्राउट तो बहुत ही शानदार होती है। 14- 15 डिग्री की ट्राउट मछली उत्तरकाशी में प्रजनन हो रहा है।

पहाड़ का स्वच्छ पानी ट्राउट फिश के लिए काम आ रहा है यह बहुत अच्छी बात है। ट्राउट के सिस्टम से और काफी लोगों को जुड़ने और समझने की आवश्यकता है। ट्राउट जीवन बदलने जा रही है उन लोगों का जो कुछ करने की इच्छा शक्ति रखते हैं।

स्रोत्र – सहकारिता विभाग उत्तराखंड फेसबुक वाल से