स्थानीय संपादक / गैरसैंण,चमोली। सरकार के घर घर सड़क सुविधा पहुंचाने के दावे हवा हवाई साबित हो रहे हैं।ग्रामीण बीमार लोगों को कुर्सी व डंडी पर लादकर अस्पताल ले जाने के लिए मजबूर हैं।
भले ही प्रदेश सरकार गांव गांव सड़क पहुचाने के बड़े बड़े वायदे जरूर करती हो। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। आज भी सड़क सुविधा न होने से लोगो को बीमार लोगों, घायलों एवं गर्भवती महिलाओं को कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर उपचार के लिए ले जाना पड़ता है। ताजा मामला गैरसैंण ब्लॉक के ग्राम सभा केडा के पांडवा गांव का है। बताते चलें कि गैरसैंण के भराड़ीसैंण में उत्तराखण्ड की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी है और यह गांव भी उसी के करीब है। तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि राजधानी क्षेत्र के बहुत से गांव आज भी एक अदद सड़क मार्ग के लिए जूझ रहे हैं।
पिछले महीनों में उत्तराखण्ड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण क्षेत्र में गैरसैंण-मेहरगांव-रामड़ा मल्ला तथा मालकोट-कालीमाटी-सेरा तेवा खर्क गांव के ग्रामीणों ने अपनी सड़कें स्वयं बनानी शुरू की थी और लंबे आंदोलनों के बाद शासन प्रशासन से समझोते के अनुसार अपने आंदोलन स्थगित भी किए थे परंतु आज भी इन ग्रामीणों की कोई सुध नहीं ली जा रही है।
बात सिर्फ गैरसैंण क्षेत्र की ही नहीं है अभी और भी कई क्षेत्र हैं जो सड़क मार्गों से नहीं जुड़ पाए हैं या जुड़े भी है तो खस्ता हालत में हैं। बात करें उत्तराखण्डियों की अलग राज्य बनाने की मंशाओं की तो अलग राज्य निर्माण के आंदोलनकारियों, शहीदों ने सोचा था कि उनके सपनों और भावनाओं का अलग राज्य बनेगा और चौमुखी विकास में राज्य बदलेगा किंतु इन 21 वर्षों में कुछ बदला है तो वह है राज्य वासियों ने मुख्यमंत्रियों को थोक के भाव बदलते देखा। अब राज्य के ग्यारहवें मुख्यमंत्री भी बन गए हैं। इस तरह उत्तराखण्ड देश का ऐसा राज्य बन गया है जहां प्रति मुख्यमंत्री का कार्यकाल औसत दो वर्ष का रहा है। नये नवेले राज्य पर मुख्यमंत्रियों के रहन, सहन,पेंशन आदि सुविधाओं के अधिकारों से अतिरिक्त बोझ भी बन गया है।
ताज़ा घटनाक्रम के अनुसार गैरसैंण क्षेत्र में सड़क की सुविधा से बन्चित पांडवा गांव की एक महिला के दोपहर में पेट दर्द होने पर महिला को कुर्सी के सहारे बांधकर कंधे में 7 किमी सड़क तक ले जाना पड़ा। जहां से महिला को रुद्रप्रयाग जिला अस्पताल ले जाया गया। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले 15 दिनों के अंदर यह 10 वां मामला है जब बीमार को यूं ही कुर्सी के सहारे अस्पताल ले जाना पड़़ रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि इस तरह अस्पताल ले जाते समय बहुत सारे लोग रास्ते में ही दम तोड़ चुके हैं। आपको बता दें कि खेत गधेरा से केडा और पांड़ाव गांवों के लिए पूर्व में 7 किलोमीटर की सर्वे पूरी हो चुकी है। लेकिन अभी तक सड़़क का काम शुरू नही हो पाया है। ऐसे में दोनों गांव के 100 परिवार आज भी सड़क का सपना ही देख रहे है।
ग्रामीणो का कहना है कि सरकार घर घर सड़़क पहुंचाने की बात तो जरूर करती है लेकीन वो सिर्फ हवा हवाई साबित होती है। अब देखने वाली बात यह होंगी कि राज्य की जनता को ग्यारहवें मुख्यमंत्री की सौगात मिली है तो गैरसैंण जैसी ही दूसरी जगहों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़कों की समस्याओं पर तूफानी गति से कार्य हो पायेगा या नहीं, उम्मीद तो किया जा सकता है परन्तु यकीनन कर पाना शायद मुश्किल होगा। इसलिए भी कि आगामी विधानसभा चुनावों का वर्ष चल रहा है और देर सवेर राज्य में आचार संहिता लगने वाली भी है।
सुरेन्द्र धनेत्रा