Home उत्तराखण्ड झलताल-सुपताल के खूबसूरत पर्वत श्रृंखलाओं और बुग्यालों के बीच श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

झलताल-सुपताल के खूबसूरत पर्वत श्रृंखलाओं और बुग्यालों के बीच श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

स्थानीय संपादक / नारायणबगड़, चमोली। झलताल-सुपताल के खूबसूरत पर्वत श्रृंखलाओं और बुग्यालों के बीच श्री कृष्ण जन्माष्टमी की धूम। लेकिन सुविधाओं से है अभी भी बंचित। यूं तो उत्तराखंड को विश्व प्रसिद्ध चार धामों और मनोहारी पर्यटन के लिए जाना जाता है। परंतु और भी तमाम ऐसे स्थल यहां मौजूद हैं जहां पर्यटन की बहुत बहुत संभावनाएं हैं और देश विदेश के सैलानियों को उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और यहां का जलवायु यहां की ऊंची -ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं,नदियां और हिमालय की मनोहारी छटाएं देश-विदेश के सैलानियों का आकर्षित कर अपनी खींचे लाते हैं।

उत्तराखंड में स्थित विश्व विख्यात चार धामों की यात्राओं को उत्तराखंड की आर्थिकी की रीढ़ माना जाता है। परंतु यदि उत्तराखंड में तमाम बेहतरीन और खूबसूरत पर्यटक स्थलों को चिन्हित कर उन्हें विकसित किया जाए तो यहां के लोगों के साथ साथ सरकार के राजस्व में भी अपार वृद्धि होने की संभावनाएं मजबूत हो सकती हैं। परंतु आज भी उत्तराखंड के कई ऐसे पर्यटक स्थल हैं जो अपने विकास का टकटकी लगाकर इंतजार कर रहे हैं।

हम आज ग्राउंड जीरो से अपने पाठकों को एक ऐसे ही बहुत ही खूबसूरत स्थान से परिचित करा रहे हैं जो अपने आप में पर्यटन की अपार संभावनाएं रखता है।बात को श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर इस स्थान पर लगने वाले मेले से शुरुआत करते हैं। यह बहुत ही रमणीक और रोमांचकारी स्थान है चमोली जिले के तीन विकास खंडों नारायणबगड़, थराली और घाट के मध्य में समुद्र तल से लगभग दो हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित झलताल एवं सुपताल का बड़ा सा मनोहारी क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर तीनों विकास खंडों के मध्य में बसा इस क्षेत्र में वैसे तो साल भर स्थानीय लोगों का आना-जाना लगा ही रहता है। यहां से दूर-दूर तक जाती नजर में जो दृश्य दिखाई देते हैं वे मानो अपनी ओर बुलाती सी लगती हैं। घाट विकासखंड के भेंटी, बंगाली,सेरी आदि गांवों को नजदीक से निहारने को भी यहां से मिलता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर लगने वाला यहां तीन दिवसीय सांस्कृतिक मेले के अवसर पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालुओं और पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ नजर आती है। तीनों ही विकास खंडों की तरफ से यहां पहुंचा जा सकता है।

थराली विकासखंड के सोल डूंगरी से पैदल लगभग 5 किलोमीटर की दूरी तय करके यहां पहुंचा जा सकता है उसी तरह विकास खंड नारायणबगड़ के सणकोट और विकासखंड घाट के भेंटी बंगाली से लगभग छः कीलोमीटर पैदल दूरी तय करके यहां पहुंचा जा सकता है। यहां पर स्थित झल ताल में इतनी ऊंचाई पर गहरा पानी लोगों के आश्चर्य का कारण है। यहां बताया जाता है कि इस ताल में पक्षियां एक तिनका भी नहीं गिरने देते हैं।और सचमुच हमने भी ग्राउंड जीरो पर देखा कि घने जंगल के बीचों-बीच इस ताल में बहुत ही स्वच्छता कायम थी। यहीं पर नागिनी माता का एक मंदिर भी है। स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां से छः कीलोमीटर नीचे सणकोट गांव में नागिनी माता के मंदिर में जो नौ धारे हैं उन धाराओं में इसी ताल का पानी जमीन के नीचे से होते हुए जाता है।

सच में यह जानकारी बहुत ही रोमांचकारी थी। जयपाल सिंह बुटोला,अबलसिंह सणकोटी, प्रेमसिंह रावत,प्रदीप नेगी,पार्वती फर्स्वाण,सरीता नेगी आदि सणकोट गांव के ग्रामीणों ने बताया कि इस झलताल में झलिया नाग का वास है।इस ताल में दूध,दही और मक्खन को चढ़ाया जाता है। सणकोट गांव के नागिनी माता के मंदिर के पास स्थित नौ जल धाराओं में इस झलताल का ही पानी जाता है,इसकी पुष्टि में यहां के लोगों ने बताया कि किसी समय में जब झलिया नाग की पूजा अर्चना के लिए इस ताल में घी,दही,मक्खन और दूध डाला गया तो यह सभी पूजन सामग्री सणकोट गांव के नागिनी माता मंदिर में नौ जल धाराओं से भी बाहर आने लगे थे।तभी से यह मान्यता पुख्ता हो गई की झलताल का पानी ही जमीन के नीचे से होता हुआ सणकोट पहुंचता है।

झलताल से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सुपताल। यह ताल दल-दल का है। बताया जाता है कि इसके नीचे भारी मात्रा में पानी मौजूद है और जो विभिन्न हिस्सों से बहती हुई जगह जगह पहुंच जाती है। इसी स्थान पर बहुत बड़ा घास का मैदान यानी जिसे स्थानीय भाषा में बुग्याल कहा जाता है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है। इस मेले में बीच वॉलीबॉल की तर्ज पर कीचड़ युक्त मैदान पर वॉलीबॉल तथा अन्य खेलों का आयोजन भी किया जाता है जोकि अपने आप में बहुत ही रोमांचकारी दृश्य पैदा करते हैं।

जब हमने यहां घाट क्षेत्र के ग्राम प्रधान सेरी-बंगाली भरत सिंह नेगी, हीरा सिंह नेगी, अवतार सिंह पुजारी,आदि लोगों से बातचीत की तो लोगों ने कहा कि यदि सरकार यहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्गों का निर्माण करें तो स्थानीय लोगों के साथ-साथ सरकार की आर्थिकी को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। तीनों विकास खंडों के बीचो बीच स्थित यह क्षेत्र बहुत बड़े भूभाग को अपने नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य को समेटे हुए है जोकि लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है परंतु आवागमन सुविधाजनक नहीं होने के कारण यहां देश विदेश के तमाम पर्यटक स्थलों को नजदीक से निहारने वाले लोगों के लिए अभी भी अछूता बनकर रह गया है।

सचमुच में यदि सरकारें इस क्षेत्र को पर्यटक स्थल के रूप में चिन्हित कर इन जगहों को विकसित करें तो यहां के लोगों के साथ साथ सरकार के राजस्व में भी अपार वृद्धि होने की संभावनाओं को मजबूत बना देगा।और पलायन रोकने में मददगार भी साबित हो सकता है। तमाम तरह के पहाड़ी उत्पादों के उत्पादन की भी यहां अनुकूलता है परंतु ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा नहीं होने के चलते यहां के कृषक यहां उत्पादन करने से झिझकते रहने के लिए मजबूर हैं।इस अवसर पर लोगों ने यह भी कहा कि तीनों विकासखंडों के सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं, जनप्रतिनिधियों और जागरूक बुद्धिजीवियों को झलताल-सुपताल क्षेत्र के चौमुखी विकास के लिए एक समिति का गठन करने की जरूरत है। ताकि यहां के लिए सामुहिक संघर्ष और प्रयास करने में मजबूती आयेगी।

पहाड़ों से लगातार रोजगार के लिए हो रहे पलायन से आज गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं अगर सरकारें उत्तराखंड के तमाम ऐसे ही प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थलों को पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित करें तो इन क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को रोजगार की संभावनाएं भी पैदा करती हैं। यहां पहुंच कर तमाम सारे नजारे सैलानी अपनी आंखों से निहार सकते हैं कि यहां के घने घने जंगल, तमाम प्रजाति की वनस्पतियां, बड़े-बड़े देवदार, बांज बुरांस और विभिन्न प्रजाति के ऊंचे ऊंचे वृक्षों से लकदक बहुत बड़ा भूभाग को निहारते निहारते मन करता है कि हमेशा हमेशा के लिए यही बस आ जाए।

आपको बताते चलें की थराली विकासखंड के सोल डूंगरी से विकासखंड घाट तक मोटर मार्ग की मांग यहां के लोगों की दशकों पुरानी मांग है और सरकार ने इसे प्रस्तावित भी क्या है। यहां के लोगों ने बताया की किया सड़क मार्ग वन अधिनियम की वजह से अभी अधर मैं लटकी हुई है जिससे इस क्षेत्र का विकास नहीं हो पा रहा है। बताते हैं कि कि जब यहां सड़क एक दूसरे विकास खंडों को जोडेगी तो तो यहां के लोगों के साथ साथ देश और दुनिया से आने वाले पर्यटकों के लिए भी यहां पहुंचना बहुत ही आसान हो जाएगा और यहां के लोगों के लिए भी एक दूसरे के विकासखंड में जाने के लिए दूरी भी बहुत ही कम हो जाएगी।

सुरेन्द्र धनेत्रा।