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दुःखद। डोटलगांव के खंडहर हो चुके जूनियर हाईस्कूल व प्राइमरी स्कूल की सुध लेने वाला कोई नही

न्यूज डेस्क / अल्मोड़ा। उत्तराखंड राज्य को बने 20 साल से अधिक हो गये हैं पर आज भी यहां के दूरस्थ गांवों में शिक्षा का हाल काफी चिंतनीय है। हमारे समाज में विद्यालयों को ज्ञान का मंदिर कह कर पूजा जाता है, पर यहां के सुदूरवर्ती क्षेत्रों के विद्यालयों की हालत बड़ी दयनीय है।

ऐसे ही खंडहर हो चुके एक जूनियर हाईस्कूल व एक प्राइमरी स्कूल जो अल्मोड़ा जिले के विकासखंड द्वाराहाट स्थित ग्रामसभा डोटलगांव में हैं। जिनकी हालत शासन-प्रशासन व यहां कार्यरत शिक्षकों की अनदेखी की वजह से खस्ताहाल व दयनीय हो चुकी है। कहते हैं बच्चे देश का भविष्य होते हैं। पर यहां तो बच्चों के जीवन पर ही खतरा मंडरा रहा है।

वर्तमान में कोविड महामारी के चलते स्कूल तो बंद हैं पर आने वाले समय में जब ये खुलेंगे तो बच्चों के जीवन में हमेशा खतरा ही मंडराता रहेगा। स्थानीय नेता व प्रशासन तभी जागेंगे जब कोई अनहोली हो जायेगी।

गांव का प्राइमरी स्कूल 2016 से ही बंद पड़ा है। जब यहां के गांव में निर्माणाधीन सड़क का मलवा इस स्कूल में गिरना शुरू हुआ तो सुरक्षा की दृष्टि से बच्चों को गांव के ही जूनियर हाईस्कूल की बिल्डिंग में स्थानांतरित कर दिया गया और सड़क के ठेकेदार ने आश्वाशन दिया था कि प्राइमरी स्कूल को जितना भी नुकसान होगा वह ठीक करेगा।

पर उस ठेकेदार ने इस स्कूल की क्षतिग्रस्त इमारत को आज तक सही नहीं किया जिस वजह से कक्षा 1 से 5 तक के कुल 14 बच्चे जूनियर हाईस्कूल की इमारत में ही पढ़ रहे हैं।

दूसरी ओर 2006-7 में निर्मित गांव के ही जूनियर हाईस्कूल की बिल्डिंग का तो बहुत ही बुरा हाल है।स्कूल के भवन में जगह-जगह दरारें पड़ी हैं, जो लगातार हादसे को न्यौता दे रही है, लेकिन प्रशासन ने आज तक इसकी सुध नहीं ली है। यह स्कूल गांव के ही बरसाती गधेरे के किनारे बना है जिसमें बरसात के दिनों में काफी खतरा मंडराता रहता है। इस स्कूल की इमारत जब से बनी है तभी से विवाद का केंद्र बनी रही। ठेकेदारों द्वारा घटिया सामग्री इस्तेमाल करने के कारण यह काफी जर्जर अवस्था में आ चुकी है। बार बार संबंधित विभागों को इसके हालात से अवगत कराया गया पर विभागों ने इस ओर ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझा।

वर्तमान में जूनियर हाईस्कूल व प्राइमरी स्कूल में दो अध्यापक, दो अध्यापिका व दो भोजन माता कार्यरत हैं। यह स्कूल 2011 में ही क्षतिग्रस्त हो चुका था। तब से शासन प्रशासन को कई बार सूचित किया गया। अधिकारी लोग आते हैं देखकर चले जाते हैं। अभी इस इमारत में दो स्कूलों के करीब 20 से 30 बच्चे अध्ययनरत हैं। जिनका जीवन भगवान या प्रशासन के भरोसे पर है।

पूर्व ग्राम प्रधान मदन मोहन कुमंया ने बताया कि अपने कार्यकाल में उनके द्वारा लगातार ब्लॉक स्तर से लेकर शासन तक विद्यालय भवन को ठीक कराने की गुहार लगाई जा चुकी है। लेकिन शासन-प्रशासन द्वारा आज तक कोई भी कार्रवाई नहीं की है। साथ ही कहा कि क्षतिग्रस्त भवन में पठन-पाठन का कार्य कराना किसी बड़ी दुर्घटना को न्योता देना है।

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