न्यूज डेस्क / देहरादून। मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, देहरादून में डॉक्टरों ने एक जीवन रक्षक प्रक्रिया कर 63 वर्षीय महिला रोगी की जान बचायी। इस प्रक्रिया के तहत साधारण ब्रोंकोस्कोपी का उपयोग करके 7 सीएम के एक बड़े आकार के ट्यूमर को रोगी की छाती से सफलतापूर्वक निकाल दिया गया। जब यह रोगी अस्पताल आयी थी तो उसे सांस लेने में काफी परेशानी हो रही थी, उनकी छाती में धीरे-धीरे बढ़ने वाला एक ट्यूमर था, जिसने उनकी दाई नली पूरी तरह और मुख्य श्वासनली (ट्रैकिया) को प्रभावित करना शुरू कर दिया था ।
इससे पहले, शहर के दूसरे अस्पताल में ट्यूमर को हटाने के दो असफल प्रयास किये गये जिसमें रोगी दो बार वेंटीलेटर पर चला गया। मैक्स अस्पताल देहरादून में इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट- सीनियर कंसल्टेंट, डॉ वैभव चाचरा ने उनका सफलतापूर्वक इलाज किया। इसके लिए एनेस्थीसिया विभाग से डॉ मंदार केटकर और डॉ गौरव अग्रवाल के साथ डॉक्टरों की एक समर्पित टीम के सक्षम मार्गदर्शन, असाधारण कौशल और विशेषज्ञता से यह मुमकिन हो पाया ।
ब्रोंकोस्कोपी कई प्रकार से की जा सकती है लेकिन हमारे देश में ऐसे इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट / ब्रोंकोस्कोपिस्ट की संख्या बहुत कम है, जो इस प्रक्रिया को सटीकता के साथ करते हैं।
पल्मोनोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ वैभव चाचरा 2018 से मैक्स अस्पताल, देहरादून में कार्यरत हैं और उत्तराखंड राज्य में 2012 से इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी शुरू करने वाले पहले डॉक्टर है।
डॉ. वैभव को पल्मोनोलॉजी के क्षेत्र में नौ वर्षों से अधिक का अनुभव है। मैक्स हॉस्पिटल में थोरैकोस्कोपी, ट्रेकिअल स्टेंटिंग, ट्यूमर डीबल्किंग से लेकर फॉरेन बॉडी को निकालने और एंडोब्रोंकियल अल्ट्रासाउंड (इबीयुएस) तक सभी तरह की इंटरवेंशनल प्रक्रियाओं की सुविधाएं उपलब्ध कर रहा है। दरअसल, मैक्स हॉस्पिटल को उत्तराखंड में सबसे पहले इबीयुएस को लाने का गौरव हासिल है।
इस मामले के बारे में विस्तार से बताते हुए, डॉ वैभव चाचरा ने कहा, “यह मरीज ब्रोन्कियल अस्थमा से पीड़ित थी और उसे इनहेलर दिए गए थे, लेकिन उससे कोई राहत नहीं मिल रही थी। सीटी स्कैन में पता चला कि उसका दाहिना मुख्य ब्रोन्कस लगभग पूरी तरह से बाधित हो गया था और पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) स्कैन में पीईटी पॉजिटिव नोड्स के साथ ट्यूमर दिखा।
उसे सांस लेने में लगातार तकलीफ हो रही थी और ट्यूमर हटाने (डीबल्किंग ) या सर्जरी से निकालने के लिए दूसरे टर्शियरी केयर सेंटर में ले जाया गया। पहले प्रयास में रोगी के ऑक्सीजन स्तर में गिरावट के कारण, उसे बाईपैप (एनआईवी) सपोर्ट पर रखा गया ।
उसके बाद, उसी केंद्र में डीबल्किंग का रिजिड ब्रोंकोस्कोपी के द्वारा फिर प्रयास किया गया । लेकिन ऑक्सीजन का स्तर फिर से गिर जाने के कारण यह प्रक्रिया असफल हो गयी और इसके कारण उसे लंबे समय तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखना पड़ा।
इस मामले के बारे में बताते हुए, डॉ चाचरा ने कहा, “हमने तुरंत ट्यूमर को निकालने का फैसला किया। शुरू में, हमने प्रक्रिया से ठीक पहले बेहोश करने की क्रिया के समय उसके एसपीओ2 के स्तर में गिरावट दर्ज की, लेकिन हमारी अत्यधिक कुशल एनेस्थीसिया टीम ने स्थिति को अच्छी तरह से संभाला। इस टीम में डॉ मंदार केतकर और डॉ गौरव अग्रवाल शामिल थे।
ट्यूमर को शुरू में (एपीसी) आर्गन प्लाज़्मा कोगुलेशन की मदद से जला दिया गया और फिर इसे पूरी तरह से साधारण ब्रोंकोस्कोपी का उपयोग करके 7 सीएम बड़े ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाल दिया।
इससे पूरा दाहिना फेफड़ा को साफ करने और खोलने में मदद मिली जो पहले ट्यूमर के कारण बाधित हो गया था।
उसी सीटिंग में, हमने एंडोब्रोंकियल अल्ट्रासाउंड (इबीयुएस) की मदद से पीईटी पॉजिटिव लिम्फ नोड्स का भी सैम्पल लिया। फिर हमने अगले दिन चेक ब्रोंकोस्कोपी की जिसमें ट्यूमर का कोई कण नहीं मिला । रोगी अच्छी तरह से ठीक हो गयी और प्रक्रिया के 48 घंटों के भीतर ही अस्पताल से डिस्चार्ज के लिए फिट थी।