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उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण में ग्रामीणों के लिए सड़क मार्ग की मुश्किलें जस की तस

Gairsain, the summer capital of Uttarakhand.

गैरसैंण,चमोली उत्तराखंड। लंबे संघर्षों के बावजूद आज भी उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी के करीबी क्षेत्र सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों की सड़क मार्ग की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं और बीमार लोगों और प्रसूता महिलाओं को डंडी कंडी के सहारे कांधों पर लादकर अस्पतालों का रुख करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

दरअसल जिस तरह से सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों को बिना सड़क मार्ग के हर दिन तमाम मुश्किलों से जूझना पड़ रहा है उससे तो सरकारों के विकास के दावों की पोल खुलती भी नजर आ रही हैं।उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की भावनाओं और सहमति की उत्तराखंड की राजधानी और सरकार की तरफ से घोषित उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी भराड़ीसैंण- गैरसैंण का एक बहुत ही नजदीकी क्षेत्र है सेरा-तेवाखर्क, जहां के लोगों के सड़क मार्ग की मांग के लिए एक लंबे संघर्षों के बावजूद भी आज उनकी किस्मत में पैदल ही चलना लिखा है।

यहां के लोगों का कहना है कि उनके गांव में कोई बुजुर्ग, नौजवान, बच्चे बीमार हो जाते हैं या किसी महिला को प्रसूति के लिए अचानक अस्पताल लेकर जाना होता है तो उनको तीन -चार किलोमिटर पहाड़ी ऊबड़-खाबड़ और खतरनाक जंगल के रास्तों से बीमार लोगों को डंडी कंडी के सहारे कांधों पर लादकर मुख्य सड़क तक लाना और ले जाना पड़ता है,और ऐसे में पैदल रास्ते में हर समय अनहोनी होने की संभावना व चिंता बनी रहती है।

शुक्रवार को गांव की एक बुजुर्ग बीमार महिला सावित्री देवी को यहां के ग्रामीण खतरनाक रास्ते से होकर अस्पताल के लिए मुख्य सड़क तक पहुंचे और वहां से लगभग चालीस किलोमीटर दूर कुमाउं मंडल के चौखुटिया ईलाज के लिए ले गये। जबकि नजदीक गैरसैंण में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध है लेकिन लोगों का कहना है कि उस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बिमार लोगों के लिए उपचार की समुचित व्यवस्था नहीं है जिस कारण लोगों को कुमाऊं मंडल के अस्पतालों और श्रीनगर व देहरादून का रुख करने को विवश होना पड़ता है जिसमें गरीब आदमी तो बिना ईलाज के ही रह जातें हैं।

capital of Uttarakhand

दुर्भाग्य की बात देखिए कि ग्रीष्मकालीन राजधानी के नज़दीकी क्षेत्र के लोगों को आज भी मात्र चार किलोमीटर एक सड़क और समुचित स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के लिए किस तरह तरसना पड़ रहा है इससे तो सरकारों के विकास की पोल भी खुल रही हैं। दरअसल सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों की लंबें समय से यहां के लिए एक मोटर मार्ग की मांग रहे है और बार बार गुहार लगाने से भी जब सड़क मंजूर नहीं हुई तो यहां के लोगों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया और जब आंदोलन से भी किसी पर कोई असर नहीं हुआ तो पिछले साल यहां के महिलाओं,पूरूषों, बच्चों और युवाओं ने अपनी सड़क स्वयं ही बनाने का फैसला लेकर सड़क बनानी शुरू की।

इसी बीच लोगों के आयना दिखाने के बाद सरकार और जनप्रतिनिधी कुछ पसीजे और यहां मोटर मार्ग स्वीकृत कर सड़क निर्माण के टेंडर भी कर दिए गए और सड़क बननी भी शुरू हो गई लेकिन आज यहां के लोगों का आरोप है कि सड़क का कहीं कोई अता-पता ही नहीं चल पा रहा है कार्यदाई संस्था आधा अधुरा काम करके चंपत हो गया और इस बात की शिकायतें लोक निर्माण विभाग से लगातार करने पर हमेशा अश्वासन के अलावा कुछ कार्यवाही नहीं की जाती है।

ऐसे में साफ है कि सरकार तो योजनाओं को स्वीकृति दे देती है लेकिन जमीनी स्तर पर सरकार के अधिकारी ही सरकार के विकासोन्मुखी योजनाओं पर पलीता लगाने से पीछे नहीं रह रहे हैं।लोगों का यह भी कहना है कि जो सड़क कुछ कुछ काटी गई है उससे उनके पैदल आने जाने वाले रास्ते भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं जिससे उनकी मुसीबतें और बढ़ गई हैं।

लोगों का कहना है कि सड़क तो स्वीकृत हुई कुछ आधा अधुरा काम भी हुआ है लेकिन रामगंगा नदी पर मोटर पुल जब-तक स्वीकृत नहीं हुआ तब-तब अगर यह सड़क बन भी जाती है तो उसका लाभ नहीं मिल पायेगा। उन्होंने कहा कि गांव में अधिकांश युवा रोजगार के लिए गांव से बाहर रहते हैं और बुजुर्ग, महिलाएं और पंद्रह से अट्ठारह आयु वर्ग के बच्चे ही गांव में रहते हैं और ऐसे में बीमर लोगों को अस्पताल पहुंचाना बहुत ही मुश्किल हो जाती है। सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों ने कहा कि शासन प्रशासन को उनकी सड़क की स्थिति को देखते हुए कार्यदाई संस्था पर कार्रवाई करते हुए उनकी सड़क को शीघ्र बनाया जाए ताकि उनकी समस्याओं में कुछ कमी आ सके।

सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों को बिना सड़क मार्ग के हर दिन तमाम मुश्किलों से जूझना पड़ रहा
सेरा-तेवाखर्क के ग्रामीणों को बिना सड़क मार्ग के हर दिन तमाम मुश्किलों से जूझना पड़ रहा

जिस प्रकार से यहां के लोगों को सड़क के लिए आज भी तरसना पड़ रहा है और शासन प्रशासन सड़क स्वीकृत होने और निर्माण कार्य भी शूरू होने के बाद जिस तरह सड़क अधर में लटकी हुई है तो ऐसे में यहां के लोगों ने कहा कि सरकार को भी चाहिए कि वह अपने विकासोन्मुखी योजनाओं पर कड़ी नजर रखने के लिए एक विशेष तंत्र को ईजाद करे ताकि सरकार के विकास के दावे असल तौर पर जमीन पर भी दिखाई दे और सरकार पर लोगों का विश्वास भी बना रहे कि सरकार अपने नागरिकों के लिए तत्पर है।

लोगों ने शासन प्रशासन को चेतावनी दी कि अगर जल्दी ही उनके गांव के मोटर मार्ग पर कार्य प्रारंभ नहीं किया जायेगा तो उनको फिर से आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इस अवसर पर ग्राम प्रधान हेमा बिष्ट,संघर्ष समिति के अध्यक्ष दयाल सिंह,हुकम सिंह,गोविंद सिंह,भीम सिंह,अवतार सिंह,महेशी देवी,चन्द्र सिंह,भरत सिंह,वीरेन्द्र सिंह आदि ग्रामीण बिमार महिला को अस्पताल पहुंचाने में शामिल रहे।

रिपोर्ट —– सुरेन्द्र धनेत्रा,स्थानीय संपादक