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संसद में हुई घटना पर राजनीति कितनी जायज, क्या इसके पीछे की सोच पर भी बात होनी चाहिए?

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बीएसएनके न्यूज डेस्क/ राजनीतिक :-13 दिसंबर को संसद में जो घटना हुई, उसकी चर्चा हर ओर हो रही है। इस घटना से सदन में मौजूद सांसदों से लेकर पूरा देश स्तब्ध रह गया। इस चूक पर अब सियासत भी शुरू हो गई है। क्या इस पर राजनीति जायज है?

पिछले दिनों लोकसभा की दर्शक दीर्घा से दो युवक सांसदों की मेज पर कूद गए। एक युवक ने जूते से कुछ निकाला और सदन के अंदर पीला धुआं छा गया। जांच एजेंसियां इस घटना के मास्टरमाइंड तक पहुंच चुकी हैं। सभी आरोपियों से पूछताछ जा रही है। इस बीच, इस मुद्दे पर  राजनीतिक बयानबाजी भी हो रही है। यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस मामले में राजनीति होनी चाहिए? क्या इस घटना को अंजाम देने वालों की सोच पर बात होनी चाहिए या चूक कहां हुई, इस पर बात होनी चाहिए? इन सभी सवालों पर इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, राखी बख्शी, पूर्णिमा त्रिपाठी, प्रेम कुमार, समीर चौगांवकर और अवधेश कुमार मौजूद रहे।

क्या इस मामले पर राजनीति जायज है?
रामकृपाल सिंह: यह बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। हमें सुरक्षा में तकनीकी रूप से बहुत दक्ष होना होगा। आने वाले समय में हमें यह ध्यान रखना होगा कि जो तकनीक आ रही है, उसके विध्वंसक इस्तेमाल की आशंका के हिसाब से चौकस भी रहना होगा।

राखी बख्शी:  इस तरह के मामले में राजनीति बिलकुल नहीं होनी चाहिए। हमें एकजुट होकर देखना होगा। पहली बात तो यह कि यह चूक हुई है। मुझे लगता है कि खुफिया एजेंसियां इसे भांप नहीं पाईं। पूरे सुरक्षा चक्र को रिव्यू करने की बात हो रही है। कहीं न कहीं यह देखा जा रहा है कि इन चेहरों के पीछे कौन है? इसे समझने की पूरी जरूरत होगी। राहत की बात यह है कि किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। घटना के वक्त हमने जो भी दृश्य देखे, वह सांसदों की एकजुटता के थे। मुझे लगता है कि इस पर राजनीति करने की जगह सभी को अपने इनपुट देने चाहिए ताकि आगे सुरक्षा को बेहतर और मजबूत बनाया जा सके। हम सभी को इस घटना की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करना चाहिए। आप लोकतंत्र के मंदिर में इस तरह का काम नहीं कर सकते।

क्या हमें पहले हमला करने वालों की सोच पर सोचना चाहिए या चूक पर?
प्रेम कुमार: 
इस घटना का एक हिस्सा है चूक का। दूसरा हिस्सा घटना के पीछे की नीयत का है। यह घटना जब घटी तो मेरे मन में आतंकी पन्नू का नाम आया। उसने चुनौती दी थी कि 13 दिसंबर या उससे पहले संसद की नींव हिला देंगे। ऐसे में यह और गंभीर हो जाता है। हालांकि, मुझे संतोष है कि अभी तक की जांच में अंतरराष्ट्रीय साजिश की बात नहीं दिखाई दी है।

अवधेश कुमार: इस घटना के चार पहलू हैं। पहला संसद में जूते में कलर स्मोक लेकर चले जाना एक चूक है, लेकिन संसद के बाहर जो हुआ वह सुरक्षा में चूक का मामला नहीं है। दूसरा यह कि क्या इस घटना के बाद सुरक्षा ऐसी कर दी जाए की चींटी भी नहीं जा सके, लेकिन इसमें ऐसा न हो कि इस घटना के बाद जो लोग सदन की कार्यवाही देखने जाना चाहते हैं, उन्हें जाने से ही रोक दिया जाए। मैं उसके पक्ष में नहीं हूं।

अब मूल पहलू की बात पर आता हूं। नरेंद्र मोदी के आने के बाद आंदोलन का स्वरूप बदल गया है। शाहीनबाग से एक दूसरा दौर शुरू हो गया है। एक वर्ग के मन में यह भरने की कोशिश की गई है कि सरकार जनकल्याण, आम आदमी की विरोधी है। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति पैदा हुई है। जितना समय इन लोगों ने इस घटना को अंजाम देने के लिए लगाया, उसकी जगह अगर वही समय किसी स्टार्टअप पर लगाते तो अपने खुद के लिए एक रोजगार पैदा कर सकते थे। अगर सरकार से विरोध है तो उसके खिलाफ आंदोलन करिए।

पूर्णिमा त्रिपाठी: मुझे लगता है कि आरोपी किसी विचारधारा से प्रभावित नहीं है। यह घटना चिंताजनक है। भले ही यह आतंकी घटना नहीं हो, सरकार की तरफ से अगर एक छोटा सा भी बयान आ जाता तो इतनी राजनीति नहीं होती। विपक्ष के जो सांसद सरकार की ओर से जवाब की मांग कर रहे हैं, उन्हें ही निलंबित किया जा रहा है।