वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी प्रकार की प्रॉपर्टी या भवन के निर्माण से पूर्व वास्तु पुरुष की पूजा करना अत्यंत आवश्यक है। मत्स्य पुराण के अनुसार यह नियम ब्रह्मा जी ने वास्तु पुरुष को आशीर्वाद देते हुए पृथ्वी वासियों के लिए बनाया था, जिसका पालन आज भी किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं तथा दानवों में भयंकर संग्राम हो रहा था, जिसमें देवताओं की ओर से भगवान शिव तथा दानवों की ओर से अंधकासुर युद्ध कर रहे थे।
इसी मध्य भगवान् शिव के माथे से पसीने की कुछ बूँदे गिरी जिनसे एक महाबली पुरुष का जन्म हुआ। उसके विशालकाय शरीर ने पृथ्वी को पूरी ओर से ढक लिया। उस विशाल पुरुष से देवता तथा दानव दोनों ही भयभीत हो गए और इसी कारण कुछ समय के लिए युद्ध थम गया। सभी देवता व दानव उस पुरुष से भयभीत होकर ब्रह्मा जी की शरण में गए और उनसे इस विषय में सहायता मांगी।
तब ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि इस विशाल पुरुष को औंधे मुँह लेटाकर सभी उसके ऊपर चढ़ कर बैठ जाए। वह पुरुष देवताओं का निवास बनने के कारण वास्तुपुरुष कहलाया। तब उसने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि हे प्रभो! बिना अपराध के ही ये देवगण मुझे कष्ट देते हैं, कृपया मेरी मदद कीजिए, और साथ ही मेरी जीविका का भी प्रबन्ध कीजिये, जिससे मैं जीवित रह सकूँ।
ब्रह्मा जी उसकी इस प्रार्थना से प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि इस पृथ्वी पर रहने वाले सभी ग्रह स्वामी किसी भी गृह प्रवेश अथवा निर्माण कार्य पर होने वाले हवन की पहली आहुति वास्तु पुरुष के नाम पर ही देंगे अन्यथा उन्हें जीवन में मुसीबतों तथा अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। वास्तु पूजा में दी जाने वाली आहुति तथा आहार ही तुम्हारा आहार होगा।
ब्रह्मा जी के आशीर्वाद के बाद से वास्तु पुरुष पृथ्वी पर सभी भूखंडों और संरचनाओं के देवता माने जाते है। वास्तु पुरुष भूमि पर अधोमुख, यानी मुंह जमीन की तरफ और पीठ ऊपर की ओर किये स्थित हैं। सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में, पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है, तथा भुजाएं पूर्व और उत्तर में हैं। इस प्रकार उनका प्रभाव सभी दिशाओं में हैं। किसी भी गृह प्रवेश में पूजन के दौरान उनके नाम की आहुति देना अनिवार्य होता है। माना जाता है कि इसके बदले में वास्तु पुरुष उस स्थान पर रहने वाले लोगों की सुख शांति की रक्षा करते हैं।
लेख – प्राची शर्मा ( वास्तुशास्त्री )