बीएसएनके न्यूज डेस्क/स्पोर्ट्स :- 2019 में शमी ने एक वर्ष में अपने करियर के सर्वाधिक 21 वनडे खेले थे, लेकिन इसके बाद वह सफेद गेंदों के प्रारूप में नियमित सदस्य नहीं रह गए। इन्होंने इस दौरान तीन साल में सिर्फ नौ वनडे खेले।
2019 विश्व कप के बाद मोहम्मद शमी सफेद गेंद के प्रारूप में भारतीय टीम के नियमित सदस्य नहीं रह गए। उन पर लाल गेंद यानि टेस्ट मैच के गेंदबाज का ठप्पा लग गया। उनके बारे में कहा जाने लगा कि वह सफेद गेंद के गेंदबाज नहीं हैं। शमी को यह बात अंदर से खाए जा रही थी। वह सफेद गेंद पर वैसा ही नियंत्रण बनाकर रखना चाहते थे, जैसा उनका लाल गेंद पर था।
लॉकडाउन में उन्हें इस पर काम करने का मौका मिल गया। उन्होंने अपने बचपन के कोच मोहम्मद बदरुद्दीन से इस बारे में बात की। कोच ने यही कहा जैसे लाल गेंद को नियंत्रण के साथ अंदर-बाहर स्विंग कराते हो, सफेद गेंद के साथ भी वैसा करो। शमी ने इसके बाद गीली गेंद से कई रातों तक अपने फार्म हाउस पर अभ्यास किया। बदरुद्दीन के मुताबिक शमी का लॉकडाउन में किया गया वह अभ्यास अब रंग दिखा रहा है।
2019 के बाद तीन साल में नौ वनडे खेले
2019 में शमी ने एक वर्ष में अपने करियर के सर्वाधिक 21 वनडे खेले थे, लेकिन इसके बाद वह सफेद गेंदों के प्रारूप में नियमित सदस्य नहीं रह गए। इन्होंने इस दौरान तीन साल में सिर्फ नौ वनडे खेले। बदरुद्दीन बताते हैं कि शमी ने उन दिनों सफेद गेंद से काफी अभ्यास किया। वनडे और टी-20 क्रिकेट ज्यादातर रात में होते हैं। उस दौरान गेंद गीली हो जाती है और गीली गेंद से स्विंग बड़ों-बड़ों के बस की बात नहीं है, लेकिन उस दौरान गेंद पर नियंत्रण और सटीकता मिल जाए तो काफी कुछ किया जा सकता है। लाल के मुकाबले सफेद गेंद थोड़ा कम स्विंग होता है। फिर वनडे में दो गेंदें चलती हैं तो रिवर्स स्विंग के अवसर भी कम होते हैं। शमी को इन्हीं सारी चीजों से तालमेल बिठाना था।
गीली गेंद पर हासिल किया नियंत्रण
बदरुद्दीन बताते हैं कि शमी ने उस दौरान इन्हीं बातों पर काम किया। लाल की तरह उन्होंने सफेद गेंद पर नियंत्रण और सटीकता बनाई। वह फार्म हाउस में रात को गेंद गीली कर लिया करते थे और उसी से कई घंटों अभ्यास किया करते थे। इससे उनका गीली गेंद पर नियंत्रण बन गया। उनकी सीम पोजीशन पहले से ही ठीक थी। एक बार उन्हें सफेद गेंद के प्रारूप में मौका मिला तो उन्होंने इसका फायदा उठाकर दिखाया।
इकोनॉमी भी हुई कम
बदरुद्दीन के मुताबिक सफेद गेंद से काम करने का शमी को यह फायदा मिला कि उनकी इकोनॉमी जो एक समय सात के आसपास चली गई थी। वह गिरनी शुरू हो गई। उन्हें विकेट मिलना भी शुरू हो गए। टीम से बाहर होने के बाद शमी काफी निराश थे, लेकिन वह मेहनत से कभी पीछे नहीं हटते हैं। अब वह लाल गेंद की तरह सफेद गेंद पर नियंत्रण के साथ सटीक गेंद फेंक रहे हैं।