बीएसएनके न्यूज डेस्क/ राजनीतिक :- अदालत ने कहा लोग सिर्फ राजनीतिक दलों के नाम पर वोट नहीं करते बल्कि उनकी नीतियों को भी देखते हैं।
उच्च न्यायालय ने गुरुवार को जाति, धार्मिक, जातीय और भाषाई अर्थ वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने के लिए दायर जनहित याचिका आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा लोग सिर्फ राजनीतिक दलों के नाम पर वोट नहीं करते बल्कि उनकी नीतियों को भी देखते हैं।
उपाध्याय ने वर्ष 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर धार्मिक, जातीय, जातीय या भाषाई अर्थ वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की थी। कानून मंत्रालय ने आज कोर्ट को बताया कि इस मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं है।
भारत के चुनाव आयोग ने कहा कि उसने 2005 में एक नीतिगत निर्णय लिया था कि धार्मिक या जातिगत नाम वाली किसी भी पार्टी को अनुमति नहीं दी जाएगी। हालाँकि 2005 से पहले बनी पार्टियाँ काम करना जारी रख सकती हैं।
याची अश्विनी उपाध्याय ने अदालत से कहा कि राजनीतिक दल या उम्मीदवार जाति या धर्म के नाम पर वोट नहीं मांग सकते हैं, लेकिन वे ऐसी पार्टियां बना सकते हैं जो किसी विशेष जाति या धर्म को दर्शाती हैं और इसलिए कानून में स्पष्ट अंतर है।
उन्होंने तर्क दिया कि जाति/धर्म के नाम का उपयोग करने वाले राजनीतिक दल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करते हैं और इसलिए संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करते हैं। कोर्ट ने कहा अगर हम यह तय करते हैं, तो हम नीति क्षेत्र में प्रवेश करेंगे, संसद इस पर फैसला करेगी। यह उनका क्षेत्र है।