बीएसएनके न्यूज / लाइफस्टाइल डेस्क। वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय शिल्प प्रणाली है। ‘वास्तु’ शब्द संस्कृत भाषा के शब्द ‘वास’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है निवास स्थान। वास्तु का एक दूसरा अर्थ ‘वस्तुओं का अध्ययन’ भी कहा जा सकता है। वास्तु शास्त्र मनुष्य और प्रकृति के बीच के सामंजस्य बिठाने पर केंद्रित है,यहाँ प्रकृति का अर्थ है पंच महाभूत अर्थात वायु,जल,पृथ्वी,अग्नि और आकाश।
अर्थात वास्तु एक ऐसे विधा है जो यह पांचो प्राकृतिक तत्वों का चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) के साथ एक सकारात्मक सामंजस्य बिठाती है । यह एक ऐसा विज्ञान है जो मानता है कि किसी इमारत की भौतिक संरचना उसमें रहने वाले या काम करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रभाव डाल सकती है। यह शास्त्र स्थापत्य विज्ञान से लिया गया है,जो की अथर्व वेद का ही एक उपवेद है। इसके अलावा ऋग्वेद, मत्स्य पुराण, स्कन्द पुराण, नारद पुराण, और यहाँ तक की कई बौद्ध ग्रंथो में भी इसका उल्लेख मिलता है।
सही वास्तु के द्वारा किसी भी स्थान में प्राणिक ऊर्जा का संतुलन स्थापित किया जा सकता है, जिससे आवासीय और व्यापारिक स्थानों में शुभता, सौभाग्य और सुख-शांति का वातावरण उत्पन्न होता है। वास्तु शास्त्र में उल्लिखित नियमों के पालन से, अशुभ ऊर्जा को दूर किया जा सकता है और सकारात्मकता को प्रोत्साहित किया जा सकता है। यदि घर का वास्तु सही हो तो पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, तथा आकाश, ये पांच महत्वपूर्ण तत्व एक सामंजस्यपूर्ण रूप में कार्य करते हैं।
वास्तु कला, सिविल इंजीनियरिंग, ज्योतिष विज्ञान, आतंरिक सजावट आदि वास्तु शास्त्र के कुछ अनिवार्य तथा महत्वपूर्ण अंग है। एक वास्तु शास्त्री जानता है कि किसी भी प्रॉपर्टी की लोकेशन, दिशा, घर की प्राकृतिक रौशनी, जल तथा वायु का सही प्रवाह, आंतरिक व् बाहरी नक्शा, फर्नीचर और रंगों का उपयोग, और सही जगह पर सही सामान की उपस्थिति, इन सिद्धांतों का पालन करके आप अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा को प्रोत्साहित कर सकते हैं और सुखी और समृद्ध जीवन की प्राप्ति कर सकते हैं।
लेख – प्राची शर्मा ( वास्तुशास्त्री )