बीएसएनके हेल्थ डेस्क। तेज आवाज एक तरह का स्लो पॉयजन है, इससे ईयरफोन लगाने वालों को हर दिन नुकसान होता है जिसे लोग समझ नहीं पाते हैं।
देश की मजबूत सेहत के लिए जिस तरह तमाम तंत्रों का दुरुस्त होना जरूरी है। ठीक उसी तरह स्वस्थ रहने के लिए शरीर के हर तंत्र का मजबूत होना उतना ही जरूरी है। आज वर्ल्ड हीयरिंग डे (World Hearing Day) है। पिछले कुछ सालों में ईयरफोन…हेडफोन…या ईयर बड्स के इस्तेमाल का चलन तेजी से बढ़ गया है और सबसे ज्यादा हाई वॉल्यूम में म्यूजिक सुनने का चलन बढ़ा है।
लिहाजा आज हम बात करेंगे आपके कान की हीयरिंग प्रॉबल्म की, जो पूरी दुनिया में गंभीर समस्या बनी हुई है। लेटेस्ट रिपोर्ट चंडीगढ़ पीजीआई के ईएनटी विभाग की आई है, जिसमें स्पीच एंड हियरिंग यूनिट के विशेषज्ञों ने एक स्टडी की है और युवाओं में बढ़ती सुनने की समस्या को लेकर जो रिपोर्ट बताई है वो हैरान करने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक, 24 घंटे में 2 घंटे तक ईयरफोन पर गाना सुनना खतरनाक हो सकता है।
35 साल से कम उम्र के लोगों में अधिक शिकायत
वहीं, जो युवा दो घंटे से ज्यादा तेज आवाज में ईयरफोन पर गाने सुनते हैं, उनकी सुनने की क्षमता तेजी से कम हुई है। 35 साल से कम उम्र के युवाओं में कम सुनाई देने से संबंधित शिकायत ज्यादा हैं। पहले 45 से 50 साल की उम्र के लोग कम सुनाई देने से संबंधित शिकायत लेकर आते थे। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 80 डेसिबल से ज्यादा की ध्वनि घातक है।
ये सीधे हमारे श्रवण सेल को प्रभावित करती है जबकि युवा ज्यादातर 90 से 100 डेसिबल पर गाने सुनते हैं। वहीं, रिपोर्ट में दिनभर में दो घंटे से ज्यादा ईयरफोन नहीं लगाने की सलाह दी गई है। बता दें ये स्टडी कम सुनाई देने वालों लोगों की शिकायत के आधार पर तैयार की गई है. तेज आवाज एक तरह का स्लो पॉयजन है, इससे ईयरफोन लगाने वालों को हर दिन नुकसान होता है जिसे लोग समझ नहीं पाते हैं।
भारत में 12 में से 1 व्यक्ति को सुनने की समस्या
इंडियन मेडिकल रिसर्च ने 2020 में एक स्टडी पब्लिश की थी, इस रिसर्च के मुताबिक, भारत में 12 में से 1 व्यक्ति को सुनने की समस्या है। भारत की आबादी का 6.3 फीसदी लोग कम सुनने की बीमारी से पीड़ित है। मैसूर में ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग ऑडियोलॉजी डिपार्टमेंट की एक स्टडी में पता चला कि यहां के 66 फीसदी लोग मॉर्डन गैजेट्स का उपयोग करके म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं। इनमें से 8 फीसदी लोगों की सुनने की क्षमता पर फर्क पड़ा है। 9.7 फीसदी लोगों ने कान में सीटियां बजने की शिकायत की. 4.5 प्रतिशत लोगों ने अपने कानों को ब्लॉक महसूस किया।
5.6 फीसदी लोगों को कान में भारीपन
वहीं, 5.6 फीसदी लोगों को कान में भारीपन महसूस हुआ। अगर आप PLD यानी पर्सनल लिसिनिंग डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं तो आपका कान कितना शोर सह सकता है ? इसकी लिमिट क्या है ? स्टडी के मुताबिक, आम बातचीत के दौरान 60-65 डेसिबल साउंड पैदा होता है, जो कि खतरनाक नहीं है।
अगर आपके आसपास शोर, हल्ला हंगामे का लेवल 90-95 डेसिबल है तो सुनने की समस्या हो सकती है। अगर आपके आसपास शोर का लेवल 125 डेसिबल पहुंचता है तो कानों में दर्द होने लगता है और अगर इसी शोर का लेवल 140 डेसिबल पहुंचता है तो व्यक्ति बहरा हो सकता है।