Home उत्तराखण्ड विश्व स्ट्रोक दिवस:- एक मिनट भी बचा सकता है जिंदगी

विश्व स्ट्रोक दिवस:- एक मिनट भी बचा सकता है जिंदगी

बीएसएनके न्यूज डेस्क / देहरादून। विश्वस्ट्रोक दिवस के अवसर पर, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, देहरादून के न्यूरोलॉजी के सलाहकार (कंसल्टेंट) , डॉ नितिन गर्ग व न्यूरोलॉजी के कंसल्टेंटडॉ सौरभ गुप्ता के साथस्ट्रोक के रोगी को तत्काल चिकित्सा देखभाल के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मीडिया को संबोधित किया।

वर्ल्ड स्ट्रोक डे के उपलक्ष में मैक्स हॉस्पिटल, देहरादून ने स्ट्रोक के मरीजों को अपनी स्ट्रोक के ऊपर जीत हासिल की उपलब्धि करने की ख़ुशी में उन्हें जागरूकता फ़ैलाने के लिए बुलाया था। मैक्स हॉस्पिटल देहरादून के लोगो में गोल्डन ऑवर की महत्वता फैलना चाहता है ताकि स्ट्रोक के सिम्पटम्स पड़ते ही मरीज को तुरंत हॉस्पिटल ले जाया जाये और उसको स्ट्रोक के परमानेंट नुक्सान से बचाया जा सके।

स्ट्रोक एक चिकित्सीय स्थिति है जिसमें मस्तिष्क में खराब रक्त प्रवाह के परिणामस्वरूप कोशिका खत्म हो जाती है। स्ट्रोक के दो मुख्य प्रकार हैं: इस्केमिक जिसका कारण रक्त प्रवाह में कमीहोतीहै और रक्तस्रावी जो रक्तस्राव के कारण होता है। एक स्ट्रोक मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से को निष्क्रिय बना सकता है।

स्ट्रोक के लक्षण

  • पक्षाघात (पैरालिसिस/paralysis)
  • हाथ, चेहरे और पैर में सुन्नता या कमजोरी, विशेष रूप से शरीर के एक तरफ
  • बोलने, समझने और देखने में परेशानी
  • मानसिक भ्रम की स्थिति
  • चलने में परेशानी, संतुलन या समन्वय बनाने में अक्षम
  • चक्कर आना, किसी अज्ञात कारण से अचानक सिरदर्द

एक स्ट्रोक को रोकने के लिए तत्काल चिकित्सादेकर इन नुकसान से बच सकते हैं:-

  • मस्तिष्क क्षति
  • दीर्घ कालीन विकलांगता
  • मौत

डॉ नितिन गर्ग ने कहा, “स्ट्रोक के बारे में महत्वपूर्ण बातयह है कि समय ही सबकुछ है। एक स्ट्रोक के बाद, प्रति सेकंड,32,000 मस्तिष्क कोशिकाएं मर जाती हैं। ऐसे में स्थायी विकलांगता को रोकने के लिए, चिकित्सा देखभाल और चिकित्सा जल्द से जल्द शुरू की जानी चाहिए।”

भारत में सही समय पर लक्षणों की पहचान करने में असमर्थता या समय पर चिकित्सा सुविधा तक पहुंचने में असमर्थता के कारण स्ट्रोक के बहुत कम रोगियों को समय पर उपचार प्राप्त होता है। स्ट्रोकको प्रभावी ढंग से पहचानने और संभालने के लिए एक सुसज्जित अस्पताल का होना भी एक चुनौती हैं।

डॉ सौरभ गुप्ता, कंसल्टेंट ने आगे बताया, “स्ट्रोक” किसी के बीच भेदभाव नहीं करता है। यह किसी भी आयु वर्ग, किसी भी सामाजिक वर्ग और किसी भी लिंग के लोगों को प्रभावित करता है। भारत में इनमें से 12% आघात40 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों में होते हैं। 50% आघात मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण होते हैं जबकि बाकी अन्य वजह से होते हैं। 

शुरुआती एक घंटे के भीतर उपचार प्रदान करने के लिए एक अस्पताल को यह सुनिश्चित करना होगा-

  • इलाज करने वाले ट्रीटिंग स्टाफ को स्ट्रोक की समझ
  •  समय पर आपात स्थिति से निपटने की क्षमता
  • मैक्स में, आघात के 100% पात्र रोगियों ने पिछले 5 वर्षों में थ्रोम्बोलाइटिक थेरेपी प्राप्त की है। हमारे सख्त अनुपालन और ऑडिट के कारण, हम 60 मिनट के अनुशंसित विश्व दिशानिर्देशों को बनाए रखने में सक्षम हैं।

डॉ. नितिन गर्ग ने आगे कहा; “योग्य स्ट्रोक रोगियों में से केवल 3% को थक्के को रोकने के लिए थ्रोम्बोलाइटिक्स प्राप्त होते हैं क्योंकि वे शायद ही समय पर अस्पताल पहुंच पाते हैं। हमें लोगों को स्ट्रोक के बारे में जागरूक करने के लिए सचेत प्रयास करने की आवश्यकता है; एक बढ़ी हुई जागरूकता और विकसित समझ स्ट्रोकके कारण होने वाली कई अक्षमताओं को रोकने में मदद कर सकती है। मैक्स अस्पताल में, हम सभी प्रकार के स्ट्रोक के रोगियों को चिकित्सकीय और शल्य चिकित्सा दोनों तरह से संभालने के लिए कुशल हैं।