ध्यानस्थ आदियोगी भगवान शिव- ध्यान से शिव होना- कमलेश डी० पटेल दाजी

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जन संवाद (बात जन मन की )- आदियोगी भगवान शिव सदैव गहन ध्यान में हैं। वे अपनी तपस्या में सर्वदा लीन हैं और उनकी तपस्या का स्वरूप है गहन समाधि! समाधिस्थ शिव का वर्णन ही हमारे पुराणों, शास्त्रों एवं कथाओं से होकर हमारी कल्पनाओं में है जो फिल्मों और टीवी सीरियलों में भी उसी रूप में दिखाया गया है।

तो एक आश्चर्य पैदा होता है कि स्वयं भगवान शिव किस पर ध्यान कर रहे हैं? ऐसा क्या है ध्यान में कि स्वयं भगवान शिव को ध्यान करने की जरूरत है? और जब वे सदैव स्वयं ध्यानस्थ हैं, वो भी कुछ इस तरह कि मानो उनका अस्तित्व ही ध्यानमय हो चुका है तो फिर हमारी दशा क्या होगी? तब फिर हमें स्वयं ध्यान क्यों नहीं करना चाहिए?

ध्यानमय शिव की एक अन्य विशेष व्याख्या है। शिव, गले में सर्प धारण किए हुए हैं। वही सर्प जो भय और वासना का प्रतीक है। उसे धारण किए हुए भी ध्यानस्थ शिव पूर्णतः शांत हैं, भय और विकारों से परे हैं। अक्रियाशील दिखाई देते हुए भी नित्य क्रियाशील हैं। योगसाधना से परंतप होते हुए सृष्टि संचालन एवं संहार को दिशा दे रहे हैं। तो क्या है ऐसा योग साधना में, कौन सी योगशक्ति है ध्यान में, जो बाह्य तौर पर स्थिर दिखाई देने वाले शरीर में भी अनंत चेतना से जुड़कर और निरंतर परिष्कृत, गहन और सूक्ष्म होती हुई चेतना द्वारा अचंभित कर देने वाले परिवर्तन करने में सक्षम है।

विज्ञान अब यह प्रमाणित कर रहा है कि सब कुछ शून्य से आता है और शून्य में चला जाता है। अस्तित्व का आधार और ब्रह्मांड का मूलभूत गुण शून्यता है। हार्टफुलनेस ध्यान इसी शून्यता की ओर यात्रा है। मानवीय चेतना जिसे हम ‘मैं’ से जानते हैं वह ध्यान के अभ्यास से दिव्य प्रकाश के सुझाव से प्रारंभ करते हुए ‘मैं’ से ‘हम’ और उससे आगे जाकर ‘अनंत चेतना’ और अंततः स्वयं ‘अस्तित्व’ से एकाकार हो जाती है। ईश्वर की अवधारणा भी इसी क्रम में साकार से निराकार और फिर निराकार से भी परे हो जाती है।

तो भगवान शिव का ध्यानमय स्वरूप हमें स्वयं की चेतना पर कार्य करने की प्रेरणा देता है। शिव दिव्य चेतना हैं। शिव कल्याणकारी हैं। शिव अनुपमेय हैं। संसार में रहकर भी परम ‘अस्तित्व’ से जुड़े रहना, ध्यानमय रहना, प्रेमपूर्ण अनासक्ति के सुंदर भाव से गृहस्थ धर्म का पालन करना, सांसारिक मोहमाया और विषयों से लिपटे हुए भी उनसे अप्रभावित रहना, उन पर विजय प्राप्त करना, बाहर से निर्विकार, अचल और स्थिर दिखाई

देते हुए भी योग तप से निरंतर संसार के कल्याणकारी कार्यों में संलग्न रहना, शांत, प्रसन्न और आत्मस्थ रहना और प्रकृति के कार्यों हेतु मानवीय चेतना का परिष्कार करते हुए उसे ईश्वरीय कार्य का माध्यम बना लेना, भगवान शिव से सीखने लायक है।

तो आइए, ध्यान का अभ्यास करें। उस चेतना का विस्तार करें जो शिवचेतना-स्वरूप हो जाए और किसी एक स्वरूप में सीमित न रहकर उस अनंत चेतना एवं परम अस्तित्व से एकाकार हो जाए जो योग साधना का सर्वोच्च है और मनुष्य जन्म के लिए प्राप्य है।

हार्टफुलनेस के वैश्विक मार्गदर्शक कमलेश डी. पटेल जिन्हें प्यार और आदर से दाजी के नाम से जाना जाता है। वे भावनात्मक आत्म-नियमन में मदद करने और व्यक्ति की चेतना को सर्वोच्च संभव स्तर तक ले जाने में वैज्ञानिक तरीके से आध्यात्मिक योग साधना के सार पर बल देते है।

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Author: BSNK NEWS

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