बीएसएनके न्यूज डेस्क। देश में कोरोना के मामलों में उतार-चढ़ाव जारी है और संकट के बीच वैक्सीनेशन अभियान पर जोर दिया जा रहा है. इस बीच स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े अधिकारियों ने गुरुवार को कहा कि मौत का जोखिम उन लोगों के लिए दोगुने से अधिक था, जिन्होंने टीका नहीं लगवाया या फिर आंशिक रूप से टीका लगवा रखा था। अधिकारियों ने पॉजिटिव कोविड-19 केस के साथ अस्पताल में भर्ती लोगों के बीच हुई मौतों से जुड़े एक सरकारी विश्लेषण के आधार पर यह नतीजा निकाला है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के नेशनल क्लीनिकल रजिस्ट्री ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार, सभी टीकाकरण वाले लोगों में, जो कोविड-19 के साथ अस्पताल में भर्ती हुए, उनमें से 10% की मृत्यु हो गई, जबकि आंशिक रूप से या फिर टीकाकरण नहीं कराने वाले लोगों के बीच मृत्यु का आंकड़ा 22% था। अधिकारियों ने गुरुवार को कहा कि मौत का जोखिम उन लोगों के लिए दोगुने से अधिक था, जिन्होंने आंशिक रूप से या फिर टीका नहीं लगवाया था. अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों में मरीजों की मौत को लेकर एक सरकारी विश्लेषण में यह आंकड़े सामने आए हैं।
मैकेनिकल वेंटिलेशन की जरुरत भी बहुत कम
आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा, “इसके अलावा, बिना टीकाकरण (11.2%) की तुलना में टीकाकरण (5.4%) करने वालों में मैकेनिकल वेंटिलेशन की आवश्यकता बहुत कम थी। इस विश्लेषण में यह भी पाया गया कि तीसरे लहर के दौरान अस्पताल में भर्ती होने की औसत आयु कम थी – 44 साल – पहले की लहर में 55 साल की तुलना में, लेकिन इस लहर में कोर्मोबिड मरीजों की संख्या ज्यादा थीं।
सरकार ने कल गुरुवार को कहा कि औसतन 44 वर्ष की आयु की युवा आबादी कोविड-19 की इस लहर में तुलनात्मक रूप से अधिक संक्रमित हुई, साथ ही, रेखांकित किया कि इस बार इलाज के लिए दवाओं का इस्तेमाल बहुत कम हुआ। साप्ताहिक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा कि कोविड की इस लहर में मरीजों में गले में खराश की समस्या ज्यादा देखने को मिली। उन्होंने कहा कि पिछली लहर की तुलना में औसतन 44 वर्ष की आयु वाली थोड़ी कम उम्र की आबादी इस लहर में अधिक संक्रमित हुई। भार्गव ने कहा कि पहले की लहरों में संक्रमित आबादी के वर्ग की औसत आयु 55 वर्ष थी।
रिसर्च के लिए 37 चिकित्सा केंद्रों में भर्ती मरीजों का डेटा
यह निष्कर्ष कोविड-19 की ‘नेशनल क्लिनिकल रजिस्ट्री’ से निकला है, जिसमें 37 चिकित्सा केंद्रों में भर्ती मरीजों के बारे में डेटा एकत्र किया गया था। भार्गव ने कहा, ‘दो समय अवधि थी, जिनका हमने अध्ययन किया। एक अवधि 15 नवंबर से 15 दिसंबर तक की थी, जब माना जाता है कि डेल्टा वेरिएंट हावी था। दूसरी अवधि 16 दिसंबर से 17 जनवरी तक की थी, जब समझा जाता है कि ओमिक्रॉन के ज्यादा मामले आ रहे थे।
भार्गव ने कहा कि 1,520 अस्पताल में भर्ती व्यक्तियों का विश्लेषण किया गया और इस तीसरे लहर के दौरान उनकी औसत आयु लगभग 44 वर्ष थी। उन्होंने कहा, ‘हमने यह भी पाया कि इस लहर के दौरान दवाओं का उपयोग काफी कम हुआ। गुर्दे की विफलता, श्वसन संबंधी गंभीर रोग (एआरडीएस) और अन्य रोगों के संबंध में कम जटिलताएं देखने को मिलीं।
भार्गव ने कहा कि आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर टीकाकरण वाले लोगों में मृत्यु दर 10 प्रतिशत और बिना टीकाकरण वाले लोगों में 22 प्रतिशत थी. उन्होंने कहा, ‘वास्तव में इस युवा आबादी में टीकाकरण करा चुके 10 में से नौ लोग पहले से कई रोगों से ग्रस्त थे, जिनकी मृत्यु हुई. बिना टीकाकरण वाले मामले में 83 प्रतिशत लोग पहले से विभिन्न रोगों से ग्रस्त थे। इसलिए टीकाकरण नहीं कराने और पहले से कई रोग से ग्रस्त होने पर किसी मरीज का भविष्य तय होता है।