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रामचरित मानस विवाद:- डटे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, PM और राष्ट्रपति को भेजा पत्र

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बीएसएनके न्यूज डेस्क। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि,मुझे उम्मीद है PM और राष्ट्रपति आदिवासी, पिछडो, दलितों, महिलाओं के सम्मान को सुनिश्चित कराने का काम करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि,तथाकथित बौद्धिक लोग मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं।

रामचरित मानस विवाद पर तमात राजनीतिक हमलों और मुकदमा होन के बावजूद उत्तर प्रदेश में सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य अपने मोर्चे पर डटे हैं। रामचरित मानस की चौपाई में संसोधन को लेकर PM मोदी और राष्ट्रपति को पत्र भेजा है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या ने बुधवार को कहा कि,मैंने रामचरित मानस की चौपाई में संसोधन के लिए PM और राष्ट्रपति को पत्र भेजा है। मौर्य ने कहा कि,मुझे उम्मीद है PM और राष्ट्रपति आदिवासी, पिछडों, दलितों, महिलाओं के सम्मान को सुनिश्चित कराने का काम करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि,तथाकथित बौद्धिक लोग मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं।

उनका कहना है कि रामचरित मानस की चौपाई के चलते आदिवासी, पिछडों, दलित और महिलाओं का अपमान हो रहा है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने आगे कहा कि, साल 2014 में PM मोदी का भी अपमान किया गया था। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि PM मोदी इस समस्या का समाधान कराए ताकि आदिवासी, पिछडों, दलितों, महिलाओं को नीच न कहा जाए। मौर्य का कहना है कि उन्होंने उन्होंने पूरी राम चरित मानस का अपमान नहीं किया, उन्होंने कुछ चौपाइयों की बात की है. जिनमें महिलाओं को अपमान झेलना पड़ता है।

पीएम मोदी को भी झेलना पड़ा अपमान-मौर्य
अपनी चिट्ठी में उन्होंने लिखा है कि पिछड़ी जाति में पैदा होने की वजह से पीएम मोदी को अपमान झेलना पड़ा अब आगे और लोग अपमानित न हों। उन्होंने कहा कि देश में संविधान लागू है, जिसके तहत सभी धर्म समान हैं.सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने पीएम मोदी और राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पत्र लिखकर रामचरित मानस की कुछ लाइनों को बैन करने की मांग की है। बता दें कि रामचरित मानस विवाद बिहार से शुरू हुआ था. बिहार के मंत्री ने इसे नफरत फैलाने वाला ग्रंथ कहा था. जिसके बाद उनकी चौतरफा आलोचना हुई।

किसने कहा रामचरितमानस धार्मिक ग्रंथ-मौर्य
उत्तर प्रदेश में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने उनके इस बयान का समर्थन किया था। मौर्य ने रामचरित मानस को पिछड़ों और दलितों को अपमानित करने वाला ग्रंथ करार दिया था। जिसके बाद संत समाज का गुस्सा उनके प्रति फूट गया। यहां तक कि मौर्य ने तो इसके धार्मिक ग्रंथ होने पर भी सवाल उठा दिए थे। उन्होंने कहा कि गाली धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि पाखंडी लोगों ने धर्म के नाम पर पिछड़ों, दलितों और महिलाओं को अपमानित किया.इस मामले पर विवाद काफी गहरा गया है. हर तरफ मौर्य का विरोध जारी है।

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