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मछली के टीके के विकास में अपने उद्यम को जारी रखते हुए आईसीएआर-सीआईएफए के साथ समझौते पर किए हस्ताक्षर

बीएसएनके न्यूज डेस्क। देश में टीकों का निर्माण करने वाली प्रमुख कंपनी, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (आईआईएल) ने ताज़े पानी की मछलियों में हेमोरेजिक सेप्टिसीमिया के खिलाफ व्यावसायिक स्तर पर टीके के विकास के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान , भुवनेश्वर के साथ साझेदारी की है। ताज़े पानी की मछलियों में होने वाली इस बीमारी को एरोमोनास सेप्टिसीमिया, अल्सर रोग या रेड-सोर रोग भी कहा जाता है।

आईआईएल ने अक्टूबर 2022 में तालाब प्रबंधन और मछली या झींगा के उदर से संबंधित समस्याओं के निदान के लिए उत्पादों को लॉन्च करके जल-जीवपालन के कारोबार में कदम रखा, और बाद में ICAR-CIFE के साथ मिलकर व्यावसायिक स्तर पर मछली के टीकों के विकास की घोषणा की। भारत की अर्थव्यवस्था में जल-जीवपालन की भूमिका बेहद अहम है और मत्स्य पालन देश में ~28 मिलियन लोगों के लिए रोजगार का साधन है।

दुनिया में भारत तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, तथा भारत में 65% से अधिक मछलियों का उत्पादन अंतर्देशीय मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर के माध्यम से होता है। हालाँकि पूरी दुनिया में जलीय जीवों में होने वाली बीमारियां एक्वाकल्चर क्षेत्र की सबसे बड़ी बाधा हैं। अनुमानों के अनुसार, विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोगों की वजह से लगभग 20% जलीय जीवों की मौत हो जाती है। विश्व स्तर पर देखा जाए, तो इससे हर साल तकरीबन 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है।

ताज़े पानी की मछलियों में हेमोरेजिक सेप्टिसीमिया नामक रोग एरोमोनास हाइड्रोफिला के कारण होता है, जो मौका पाकर मछलियों में रोग फैलाने वाला एक बैक्टीरिया होता है। यह संक्रमण दुनिया भर में ताज़े और खारे पानी की मछली पालन के लिए सबसे बड़ा संकट है, जिसे पिछले कई दशकों में भारतीय जल-जीवपालन के लिए एक बड़ी आर्थिक समस्या के तौर पर देखा गया है। भारत में ताज़े पानी में रोहू, कतला, मृगल, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प, मीडियम कार्प, चैनल कैटफ़िश, ईल जैसी कई प्रजातियों की मछलियों का पालन किया जाता है, और इन सभी प्रजातियों में यह रोग होने की संभावना बहुत अधिक होती है।

पिछले कुछ वर्षों से, एरोमोनास हाइड्रोफिला सहित विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक्स और कीमोथेरेप्यूटेंट्स का उपयोग किया जाता है। अगर इनकी रोकथाम के लिए लंबे समय तक रसायनों का उपयोग किया जाए, तो धीरे-धीरे ऐसे रोगजनक बैक्टीरिया पर इन रसायनों का असर नहीं होता है, साथ ही कुछ रसायन पर्यावरण की सेहत के लिए खतरा पैदा करते हैं। इस लिहाज से देखा जाए, तो रोगों की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे आशाजनक और पर्यावरण के नजरिए से बेहद सुरक्षित तरीका है।

इस अवसर पर अपनी राय जाहिर करते हुए, डॉ. के. आनंद कुमार, मैनेजिंग डायरेक्टर, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड, ने कहा, “भारत में सबसे पहले आईआईएल ने ही मछलियों के लिए टीके तैयार किए हैं। हम पशुधन टीकों के विकास में सबसे पहली कंपनी होने से जुड़ी चुनौतियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। हम भारत में मछली के टीकों के व्यावसायिक स्तर पर विकास की नई राह बनाने के लिए कई मोर्चों पर एक-साथ काम कर रहे हैं।”

डॉ. प्रियव्रत पटनायक, डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड, ने कहा, “आईआईएल अपनी “वन हेल्थ” पहल के तहत एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग के साथ-साथ पर्यावरण में रोगाणुरोधी रसायनों के प्रतिरोध को कम करने के दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देश्य के साथ मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए टीके विकसित करने के अपने वादे पर कायम है।

डॉ. प्रमोद कुमार साहू, निदेशक, आईसीएआर-सीआईएफए, ने कहा, “फिलहाल भारत में मत्स्य पालन के क्षेत्र में संक्रमण की रोकथाम के लिए वाणिज्यिक स्तर पर मछली का टीका उपलब्ध नहीं है। CIFA के वैज्ञानिकों ने कई सालों तक शोध करने के बाद एरोमोनस सेप्टिसीमिया के खिलाफ टीका विकसित किया है। मुझे इस बात की खुशी है कि, आईआईएल ने व्यावसायिक स्तर पर इस टीके के विकास के लिए कदम बढ़ाया है।

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